"ब्रह्म पुराण" के 118 वें अध्याय* में शनिदेव कहते हैं- 'मेरे दिन अर्थात् शनिवार को जो मनुष्य नियमित रूप से पीपल के वृक्ष का स्पर्श करेंगे, उनके सब कार्य सिद्ध होंगे तथा मुझसे उनको कोई पीड़ा नहीं होगी। जो शनिवार को प्रातःकाल उठकर पीपल के वृक्ष का स्पर्श करेंगे, उन्हें ग्रहजन्य पीड़ा नहीं होगी।' (ब्रह्म पुराण')
.
शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष का दोनों हाथों से स्पर्श करते हुए "ॐ नमः शिवाय" का 108 बार जप करने से दुःख, कठिनाई एवं ग्रहदोषों का प्रभाव शांत हो जाता है। (ब्रह्म पुराण)
.
हिंदू धर्म में पीपल का बहुत महत्व है। पीपल के वृक्ष को संस्कृत में प्लक्ष भी कहा गया है। वैदिक काल में इसे अश्वार्थ इसलिए कहते थे, क्योंकि इसकी छाया में घोड़ों को बांधा जाता था। अथर्ववेद के उपवेद आयुर्वेद में पीपल के औषधीय गुणों का अनेक असाध्य रोगों में उपयोग वर्णित है। औषधीय गुणों के कारण पीपल के वृक्ष को 'कल्पवृक्ष' की संज्ञा दी गई है। पीपल के वृक्ष में जड़ से लेकर पत्तियों तक तैंतीस कोटि देवताओं का वास होता है और इसलिए पीपल का वृक्ष प्रात: पूजनीय माना गया है। उक्त वृक्ष में जल अर्पण करने से रोग और शोक मिट जाते हैं। हिन्दू धर्म मानता है कि प्रकृति ही ईश्वर की पहली प्रतिनिधि है। हिन्दू धर्म को वृक्षों का धर्म कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति एक पीपल, एक नीम, दस इमली, तीन कैथ, तीन बेल, तीन आंवला और पांच आम के वृक्ष लगाता है, वह पुण्यात्मा होता है और कभी नरक के दर्शन नहीं करता। इसके अलावा एक बरगद, एक अनार, एक कड़ीपत्ता, एक जामफल, एक तुलसी, एक नींबू, एक अशोक, एक चमेली, एक चम्पा का वृक्ष लगाने से निरोगी काया रहकर घर में धन, समृद्धि और शांति बनी रहती है।
.
पीपल के प्रत्येक तत्व जैसे छाल, पत्ते, फल, बीज, दूध, जटा एवं कोपल तथा लाख सभी प्रकार की आधि-व्याधियों के निदान में काम आते हैं। हिंदू धार्मिक ग्रंथों में पीपल को अमृततुल्य माना गया है। सर्वाधिक ऑक्सीजन निस्सृत करने के कारण इसे प्राणवायु का भंडार कहा जाता है। सबसे अधिक ऑक्सीजन का सृजन और विषैली गैसों को आत्मसात करने की इसमें अकूत क्षमता है।
.
गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं, 'हे पार्थ वृक्षों में मैं पीपल हूं।'
.
।।मूलतः ब्रह्म रूपाय मध्यतो विष्णु रुपिणः।
अग्रतः शिव रुपाय अश्वत्त्थाय नमो नमः।।
.
भावार्थ-अर्थात इसके मूल में ब्रह्म, मध्य में विष्णु तथा अग्रभाग में शिव का वास होता है। इसी कारण 'अश्वत्त्थ'नामधारी वृक्ष को नमन किया जाता है।-पुराण
.
स्कन्द पुराण में वर्णित पीपल के वृक्ष में सभी देवताओं का वास है। पीपल की छाया में ऑक्सीजन से भरपूर आरोग्यवर्धक वातावरण निर्मित होता है। इस वातावरण से वात, पित्त और कफ का शमन-नियमन होता है तथा तीनों स्थितियों का संतुलन भी बना रहता है। इससे मानसिक शांति भी प्राप्त होती है। पीपल की पूजा का प्रचलन प्राचीन काल से ही रहा है। इसके कई पुरातात्विक प्रमाण भी है।
.
अश्वत्थोपनयन व्रत के संदर्भ में महर्षि शौनक कहते हैं कि मंगल मुहूर्त में पीपल वृक्ष की नित्य तीन बार परिक्रमा करने और जल चढ़ाने पर दरिद्रता, दु:ख और दुर्भाग्य का विनाश होता है। पीपल के दर्शन-पूजन से दीर्घायु तथा समृद्धि प्राप्त होती है। अश्वत्थ व्रत अनुष्ठान से कन्या अखण्ड सौभाग्य पाती है।
शनिवार की अमावस्या को पीपल वृक्ष की पूजा और सात परिक्रमा करके काले तिल से युक्त सरसो के तेल के दीपक को जलाकर छायादान करने से शनि की पीड़ा से मुक्ति मिलती है। अनुराधा नक्षत्र से युक्त शनिवार की अमावस्या के दिन पीपल वृक्ष के पूजन से शनि पीड़ा से व्यक्ति मुक्त हो जाता है। श्रावण मास में अमावस्या की समाप्ति पर पीपल वृक्ष के नीचे शनिवार के दिन हनुमान की पूजा करने से सभी तरह के संकट से मुक्ति मिल जाती है।
.
बरगद..............
.
बरगद को वटवृक्ष कहा जाता है। हिंदू धर्म में वट सावत्री नामक एक त्योहार पूरी तरह से वट को ही समर्पित है। पीपल के बाद बरगद का सबसे ज्यादा महत्व है। पीपल में जहां भगवान विष्णु का वास है वहीं बरगद में ब्रह्मा, विश्णु और शिव का वास माना गया है। हालांकि बरगद को साक्षात शिव कहा गया है। बरगद को देखना शिव के दर्शन करना है।
.
हिंदू धर्मानुसार पांच वटवृक्षों का महत्व अधिक है। अक्षयवट, पंचवट, वंशीवट, गयावट और सिद्धवट के बारे में कहा जाता है कि इनकी प्राचीनता के बारे में कोई नहीं जानता। संसार में उक्त पांच वटों को पवित्र वट की श्रेणी में रखा गया है। प्रयाग में अक्षयवट, नासिक में पंचवट, वृंदावन में वंशीवट, गया में गयावट और उज्जैन में पवित्र सिद्धवट है।
.
।।तहं पुनि संभु समुझिपन आसन।
बैठे वटतर, करि कमलासन।।
.
भावार्थ-अर्थात कई सगुण साधकों, ऋषियों, यहां तक कि देवताओं ने भी वट वृक्ष में भगवान विष्णु की उपस्थिति के दर्शन किए हैं।- रामचरित मानस
.
आम............
.
हिंदू धर्म में जब भी कोई मांगलिक कार्य होते हैं तो घर या पूजा स्थल के द्वार व दीवारों पर आम के पत्तों की लड़ लगाकर मांगलिक उत्सव के माहौल को धार्मिक और वातावरण को शुद्ध किया जाता है।
.
अक्सर धार्मिक पंडाल और मंडपों में सजावट के लिए आम के पत्तों का इस्तेमाल किया जाता है। आम के वृक्ष की हजारों किस्में हैं और इसमें जो फल लगता है, वह दुनियाभर में प्रसिद्ध है। आम के रस से कई प्रकार के रोग दूर होते हैं।
.
शमी............
.
विक्रमादित्य के समय में सुप्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर ने अपने 'बृहतसंहिता'नामक ग्रंथ के 'कुसुमलता'नाम के अध्याय में वनस्पति शास्त्र और कृषि उपज के संदर्भ में जो जानकारी प्रदान की है, उसमें शमीवृक्ष अर्थात खिजड़े का उल्लेख मिलता है।
.
वराहमिहिर के अनुसार जिस साल शमीवृक्ष ज्यादा फूलता-फलता है, उस साल सूखे की स्थिति का निर्माण होता है। विजयादशमी के दिन इसकी पूजा करने का एक तात्पर्य यह भी है कि यह वृक्ष आने वाली कृषि विपत्ती का पहले से संकेत दे देता है, जिससे किसान पहले से भी ज्यादा पुरुषार्थ करके आनेवाली विपत्ती से निजात पा सकता है।
.
बिल्व अथवा बेल (बिल्ला) .................
.
यह विश्व के कई हिस्सों में पाया जाने वाला वृक्ष है। भारत में इस वृक्ष का पीपल, नीम, आम, पारिजात और पलाश आदि वृक्षों के समान ही बहुत अधिक सम्मान है। हिन्दू धर्म में बिल्व वृक्ष भगवान शिव की अराधना का मुख्य अंग है।
.
धार्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होने के कारण इसे मंदिरों के पास लगाया जाता है। बिल्व वृक्ष की तासीर बहुत शीतल होती है। गर्मी की तपिश से बचने के लिए इसके फल का शर्बत बड़ा ही लाभकारी होता है। यह शर्बत कुपचन, आंखों की रोशनी में कमी, पेट में कीड़े और लू लगने जैसी समस्याओं से निजात पाने के लिए उत्तम है। औषधीय गुणों से परिपूर्ण बिल्व की पत्तियों मे टैनिन, लोह, कैल्शियम, पोटेशियम और मैग्नेशियम जैसे रसायन पाए जाते हैं।
.
बेल वृक्ष ..............
.
बेल वृक्ष की उत्पत्ति के संबंध में 'स्कंदपुराण' में कहा गया है कि एक बार देवी पार्वती ने अपनी ललाट से पसीना पोछकर फेंका, जिसकी कुछ बूंदें मंदार पर्वत पर गिरीं, जिससे बेल वृक्ष उत्पन्न हुआ। इस वृक्ष की जड़ों में गिरिजा, तना में महेश्वरी, शाखाओं में दक्षयायनी, पत्तियों में पार्वती, फूलों में गौरी और फलों में कात्यायनी वास करती हैं।
.
कहा जाता है कि बेल वृक्ष के कांटों में भी कई शक्तियाँ समाहित हैं। यह माना जाता है कि देवी महालक्ष्मी का भी बेल वृक्ष में वास है। जो व्यक्ति शिव-पार्वती की पूजा बेलपत्र अर्पित कर करते हैं, उन्हें महादेव और देवी पार्वती दोनों का आशीर्वाद मिलता है। 'शिवपुराण' में इसकी महिमा विस्तृत रूप में बतायी गयी है।
.
अशोक वृक्ष............
.
अशोक वृक्ष को हिन्दू धर्म में बहुत ही पवित्र और लाभकारी माना गया है। अशोक का शब्दिक अर्थ होता है- किसी भी प्रकार का शोक न होना। मांगलिक एवं धार्मिक कार्यों में अशोक के पत्तों का प्रयोग किया जाता है।
.
माना जाता है कि अशोक वृक्ष घर में लगाने से या इसकी जड़ को शुभ मुहूर्त में धारण करने से मनुष्य को सभी शोकों से मुक्ति मिल जाती है। अशोक का वृक्ष वात-पित्त आदि दोष, अपच, तृषा, दाह, कृमि, शोथ, विष तथा रक्त विकार नष्ट करने वाला है। यह रसायन और उत्तेजक है। इसके उपयोग से चर्म रोग भी दूर होता है। अशोक का वृक्ष घर में उत्तर दिशा में लगाना चाहिए जिससे गृह में सकारात्मक ऊर्जा का संचारण बना रहता है। घर में अशोक के वृक्ष होने से सुख, शांति एवं समृद्धि बनी रहती है एवं अकाल मृत्यु नहीं होती।
.
अशोक का वृक्ष दो प्रकार का होता है- एक तो असली अशोक वृक्ष और दूसरा उससे मिलता-जुलता नकली अशोक वृक्ष। नकली अशोक वृक्ष देवदार की जाति का लंबा वृक्ष होता है। इसके पत्ते आम के पत्तों जैसे होते हैं। इसके फूल सफेद, पीले रंग के और फल लाल रंग के होते हैं।
.
असली अशोक का वृक्ष आम के पेड़ जैसा छायादार वृक्ष होता है। इसके पत्ते 8-9 इंच लंबे और दो-ढाई इंच चौड़े होते हैं। इसके पत्ते शुरू में तांबे जैसे रंग के होते हैं इसीलिए इसे 'ताम्रपल्लव' भी कहते हैं। इसके नारंगी रंग के फूल वसंत ऋतु में आते हैं, जो बाद में लाल रंग के हो जाते हैं। सुनहरे लाल रंग के फूलों वाला होने से इसे 'हेमपुष्पा' भी कहा जाता है।
.
नारियल.................
.
हिन्दू धर्म में नारियल के बिना तो कोई मंगल कार्य संपन्न होता ही नहीं। नारियल का खासा धार्मिक महत्व है। 60 फुट से 100 फुट तक ऊंचा नारियल का पेड़ लगभग 80 वर्षों तक जीवित रहता है। 15 वर्षों के बाद पेड़ में फल लगते हैं।
.
पूजा के समय कलश में पानी भरकर उसके ऊपर नारियल रखा जाता है। यह मंगल प्रतीक है। नारियल का प्रसाद भगवान को चढ़ाया जाता है।
.
पेड़ का प्रत्येक भाग किसी न किसी काम में आता है। ये भाग किसानों के लिए बड़े उपयोगी सिद्ध हुए हैं। इसे घरों के पाट, फर्नीचर आदि बनाए जाते हैं। पत्तों से पंखे, टोकरियां, चटाइयां आदि बनती हैं। इसकी जटा से रस्सी, चटाइयां, ब्रश, जाल, थैले आदि अनेक वस्तुएं बनती हैं। यह गद्दों में भी भरा जाता है। नारियल का तेल सबसे ज्यादा बिकता है।
.
नारियल के पानी में पोटेशियम अधिक मात्रा में होता है। इसे पीने से शरीर में किसी भी प्रकार की सुन्नता नहीं रहती। अगर आप पाचन की समस्या से ग्रसित हैं तो 1 गिलास नारियल का पानी लें, उसमें अन्ननास का जूस मिलाएं और पूरे 9 दिन तक नाश्ते से पहले उसे पीएं। इसे पीने के बाद 2 घंटे तक किसी भी प्रकार का भोजन न करें और न ही कोई अन्य पेय पीएं।
.
नारियल के गूदे का उपयोग नाड़ियों की समस्या, कमजोरी, स्मृति नाश, पल्मनरी अफेक्शन्स (फेफड़ों के रोगों) के उपचार के लिए किया जाता है। यह त्वचा संबंधी तथा आंतड़ियों संबंधी समस्याओं को भी दूर करता है। अस्थमा से पीड़ित व्यक्तियों को भी नारियल पानी पीने की सलाह दी जाती है।
.
अनार का वृक्ष............
.
अनार के वृक्ष से जहां सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण होता हैं वहीं इस वृक्ष के कई औषधीय गुण भी हैं। पूजा के दौरान पंच फलों में अनार की गिनती की जाती है।
.
अनार को दाडम या दाड़िम आदि अलग-अलग नाम से जानते हैं। अनार का वृक्ष भी बहुत ही सुंदर होता है, जिसे बगिया की शोभा के लिए भी लगाया जा सकता है। इसकी कली, फूल और फल भी सुंदर होते हैं।
.
अनार का प्रयोग करने से खून की मात्रा बढ़ती है। इससे त्वचा सुंदर व चिकनी होती है। अनार का रस रोज पीने से या अनार खाने से त्वचा का रंग निखरता है। अनार के छिलकों के एक चम्मच चूर्ण को कच्चे दूध और गुलाब जल में मिलाकर चेहरे पर लगाने से चेहरा दमक उठता है। अपच, दस्त, पेचिश, दमा, खांसी, मुंह में दुर्गंध आदि रोगों में अनार लाभदायक है। इसके सेवन से शरीर में झुर्रियां या मांस का ढीलापन समाप्त हो जाता है।
.
नीम...........
.
नीम एक चमत्कारी वृक्ष माना जाता है। नीम जो प्रायः सर्व सुलभ वृक्ष आसानी से मिल जाता है। नीम को संस्कृत में निम्ब कहा जाता है। यह वृक्ष अपने औषधीय गुणों के कारण पारंपरिक इलाज में बहुपयोगी सिद्ध होता आ रहा है। चरक संहिता और सुश्रुत संहिता जैसे प्राचीन चिकित्सा ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है।
.
निम्ब शीतों लघुग्राही कतुर कोअग्नी वातनुत।
अध्यः श्रमतुटकास ज्वरारुचिक्रिमी प्रणतु ॥
.
अर्थात नीम शीतल, हल्का, ग्राही पाक में चरपरा, हृदय को प्रिय, अग्नि, वाट, परिश्रम, तृषा, अरुचि, क्रीमी, व्रण, कफ, वामन, कोढ़ और विभिन्न प्रमेह को नष्ट करता है।
.
नीम के पेड़ का औषधीय के साथ-साथ धार्मिक महत्त्व भी है। मां दुर्गा का रूप माने जाने वाले इस पेड़ को कहीं-कहीं नीमारी देवी भी कहते हैं। इस पेड़ की पूजा की जाती है। कहते हैं कि नीम की पत्तियों के धुएं से बुरी और प्रेत आत्माओं से रक्षा होती है।
.
केले का पेड़................
.
केले का पेड़ काफी पवित्र माना जाता है और कई धार्मिक कार्यों में इसका प्रयोग किया जाता है। भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को केले का भोग लगाया जाता है। केले के पत्तों में प्रसाद बांटा जाता है। माना जाता है कि समृद्धि के लिए केले के पेड़ की पूजा अच्छी होती है।
.
केला हर मौसम में सरलता से उपलब्ध होने वाला अत्यंत पौष्टिक एवं स्वादिष्ट फल है। केला रोचक, मधुर, शक्तिशाली, वीर्य व मांस बढ़ाने वाला, नेत्रदोष में हितकारी है। पके केले के नियमित सेवन से शरीर पुष्ट होता है। यह कफ, रक्तपित, वात और प्रदर के उपद्रवों को नष्ट करता है।
.
केले में मुख्यतः विटामिन-ए, विटामिन-सी,थायमिन, राइबो-फ्लेविन, नियासिन तथा अन्य खनिज तत्व होते हैं। इसमें जल का अंश 64.3 प्रतिशत, प्रोटीन 1.3 प्रतिशत, कार्बोहाईड्रेट 24.7 प्रतिशत तथा चिकनाई 8.3 प्रतिशत है।
हानि .................
.
कदम्ब, केला और नींबू जिसके घर में उत्पन्न होता है उस घर का मालिक कभी विकास नहीं करता।
पाकर, गूलर, आम, नीम, बहेड़ा तथा कांटेदार वृक्ष, पीपल, अगस्त, इमली ये सभी घर के समीप निंदित कहे गए हैं।
कहते हैं कि पूर्व में पीपल, अग्निकोण में दुग्धदार वृक्ष, दक्षिण में पाकड़, निम्ब, नैऋत्य में कदम्ब, पश्चिम में कांटेदार वृक्ष, उत्तर में गुलर, केला, छाई और ईशान में कदली वृक्ष नहीं लगा चाहिए। किसी वास्तुशास्त्री से सलाह लें।
पूर्व में लगे फलदार वृक्ष से संतति की हानि, पश्चिम में लगे कांटेदार वृक्ष से शत्रु का भय, दक्षिण में दूधवाले वृक्ष लगे होने से धननाश होता है। ये वृक्ष पीड़ा, कलह, नेत्ररोग तथा शोक प्रदान करते हैं। हालांकि ये वृक्ष घर की किसी भी दिशा में नहीं हो तो ही अच्छा है।
बैर, पाकड़, बबूल, गूलर आदि कांटेदार पेड़ घर में दुश्मनी पैदा करते हैं। इनमें जति और गुलाब अपवाद हैं। घर में कैक्टस के पौधे नहीं लगाएं।
जामुन और अमरूद को छोड़कर फलदार वृक्ष भवन की सीमा में नहीं होने चाहिए। इससे बच्चों का स्वास्थ्य खराब होता है।
आवासीय परिसर में दूध वाले वृक्ष लगाने से धनहानि होती है।
महुआ, पीपल, बरगद घर के बाहर होना चाहिए। केवड़ा और चंपा को लगा सकते हैं।
जिन पेड़ों से गोंद निकलता हो अर्थात चीड़ आदि घर के परिसर में नहीं लगाने चाहिएं। यह धन हानि की संभावना को बढ़ाता है।
घर की दक्षिण दिशा में गुलमोहर, पाकड़, कटहल के वृक्ष लगाने से अकारण शत्रुता, अर्थनाश, असंतोष व कलह होने की संभावना रहती है।
दक्षिण पूर्व दिशा अर्थात आग्नेय कोण की ओर पलाश, जवाकुसुम, बरगद, लाल गुलाब अशुभ एवं कष्टदायक होते हैं। इस दिशा में लाल फूलों के वृक्षों व लताएं तथा कांटे वाले वृक्ष अनिष्टकारक एवं मृत्युकारक माने गए हैं।
घर की पूर्व दिशा की ओर पीपल और बरगद के वृक्ष लगाने शुभ नहीं होते। इनसे स्वास्थ्य हानि, प्रतिष्ठा में कमी एवं अपकीर्ति के संकेत मिलते हैं।
.
लाभ ...............
.
तुलसी और केले के पेड़ को ईशान या उत्तर में लगाने से घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
घर के पूर्व में बरगद, पश्चिम में पीपल, उत्तर में पाकड़ और दक्षिण में गूलर का वृक्ष शुभ होता है किंतु ये घर की सीमा में नहीं होना चाहिए।
घर के उत्तर एवं पूर्व क्षेत्र में कम ऊंचाई के पौधे लगाने चाहिए। पौधारोपण उत्तरा, स्वाति, हस्त, रोहिणी एवं मूल नक्षत्रों में करना चाहिए। ऐसा करने पर रोपण निष्फल नहीं होता।
घर के दक्षिण एवं पश्चिम क्षेत्र में ऊंचे वृक्ष (नारियल अशोकादि) लगाने चाहिए। इससे शुभता बढ़ती है।
जिस घर की सीमा में निगुंडी का पौधा होता है वहां गृह कलह नहीं होती।
जिस घर में एक बिल्व का वृक्ष लगा होता है उस घर में लक्ष्मी का वास बतलाया गया है।
जिस व्यक्ति को उत्तम संतान एवं सुख देने वाले पुत्र की कामना हो, उसे पलाश का पेड़ लगाना चाहिए।
जिस व्यक्ति को संकटों से मुक्ति पाना और निरोगी रहना हो उसे घर के दक्षिण में नीम का वृक्ष लगाना चाहिए।
जिस व्यक्ति को राहु के दोष दूर करना हो उसे चंदर का वृक्ष लगाना चाहिए।जिस व्यक्ति को शनि से संबंधित बाधा दूर करना हो उसे शमी का वृक्ष लगाना चाहिए। उत्तर दिशा में पीपल, ईशान कोण में लटजीरा, पूर्व में गूलर, आग्नेय कोण में ढाक या पलाश, दक्षिण में खैर लगाया जाता है।
अनार का पौधा घर में लगाने से कर्जे से मुक्ति मिलती है। हल्दी का पौधा लगाने से घर में नकारात्मक उर्जा नहीं रहती। नीले फूल वाली कृष्णकांता की बेल से आर्थिक समस्याएं खत्म होती हैं। नारियल के पेड़ से मान-सम्मान में खूब वृद्धि होती है। अशोक का वृक्ष लगाने से घर के बच्चों की बुद्धि तेज होती है।
तुलसी, आंवला और बहेड़ा का पौधा घर में लगाने से बीमारी नहीं आती है।गेंदा लगाने से बृहस्पति मजबूत होता है और वैवाहिक जीवन सुखमय रहता है। बांस का पेड़ लगाने से तरक्की होती है और घर में सुख-समृद्धि आती है। निगेटिव एनर्जी भी दूर होती है। गुड़हल का पौधा लगाने से कानून संबंधी सभी काम पूरे हो जाते हैं।
बेलपत्र का पौधा लगाने से पीढ़ी दर पीढ़ी लक्ष्मी जी का वास बना रहता है।घर की पूर्व दिशा में गुलाब, चंपा, चमेली, बेला, दुर्वा, तुलसी आदि के पौधे लगाने चाहिएं। इससे शत्रुनाश, धनसंपदा की वृद्धि व संतति सुख प्राप्त होता है। घर की दक्षिण दिशा में नीम, नारियल, अशोक के वृक्ष लगाना शुभ होता है।
.
नोट- पेड़ लगाकर उसके फलों या औषधि का लाभ लें और यदि खराब हैं तो दान करें। लेकिन ध्यान रखें कि पेड़ किस दिशा में किस नक्षत्र में लगाना चाहिए यह जरूर जान लें।
0 Comments