दांत खराब है ? गभराइये मत इन पेड़ों की दातुन कीजिये

महर्षि वाग्भट के अष्टांगहृदयम में दातून के बारे में बताया गया है। वे कहते हैं कि दातुन कीजिये | दातुन कैसा ? तो जो स्वाद में कसाय हो। कसाय मतलब कड़वा और नीम का दातुन कड़वा ही होता है और इसीलिए उन्होंने नीम के दातुन की बड़ाई (प्रसंशा) की है। उन्होंने नीम से भी अच्छा एक दूसरा दातुन बताया है, वो है मदार का, उसके बाद अन्य दातुन के बारे में उन्होंने बताया है जिसमे बबूल , अर्जुन, आम , अमरुद जामुन,महुआ,करंज,बरगद,अपामार्ग,बेर,शीशम,बांस इत्यादि है। ऐसे 12 वृक्षों का नाम उन्होंने बताया है जिनके दातुन आप कर सकते हैं। चैत्र माह से शुरू कर के गर्मी भर नीम, मदार या बबूल का दातुन करने के लिए उन्होंने बताया है, सर्दियों में उन्होंने अमरुद या जामुन का दातुन करने को बताया है, बरसात के लिए उन्होंने आम या अर्जुन का दातुन करने को बताया है। आप चाहें तो साल भर नीम का दातुन इस्तेमाल कर सकते हैं लेकिन उसमे ध्यान इस बात का रखे कि तीन महीने लगातार करने के बाद इस नीम के दातुन को कुछ दिन का विश्राम दें। इस अवधि में मंजन कर ले। दन्त मंजन बनाने की आसान विधि उन्होंने बताई है। वे कहते हैं कि आपके स्थान पर उपलब्ध खाने का तेल (सरसों का तेल. नारियल का तेल, या जो भी तेल आप खाने में इस्तेमाल करते हों, रिफाइन छोड़ कर), उपलब्ध लवण मतलब नमक और हल्दी मिलाकर आप मंजन बनाये और उसका प्रयोग करें।
दातून (Teeth cleaning twig) किसी उपयुक्त वृक्ष की पतली टहनी से बना लगभग १५-२० सेमी लम्बा दाँत साफ करने वाला परम्परागत बुरुश है। इसके लिये बहुत से पेड़ों की टहनियाँ उपयुक्त होती हैं किन्तु नीम, मिसवाक आदि की टहनिया विशेष रूप से लोकप्रिय हैं। कृत्रिम बुरुश की अपेक्षा दातून के कई लाभ हैं, जैसे कम लागत, अधिक पर्यावरणहितैषी आदि।
आपने कभी सोचा है कि पहले जमाने में दांतों की समस्या बहुत कम लोगों को होती थी, क्या आपने कभी सोचा है क्यों? पहले लोग ब्रश-पेस्ट का इस्तेमाल नहीं करते थे, बल्कि दातुन से मुंह धोते थे। न उनके दांतो में सेंसिटिविटी की समस्या थी, न ही पीले दांतों की, और न ही सांसो में बदबू की। और सबसे आश्चर्य की बात यह है कि आज बड़ी-बड़ी कंपनियाँ इन्हीं नैचुरल चीजों को मिलाकर टूथपेस्ट बनाकर मार्केट में लाती है लोग पागलों की तरह उनको खरीदते हैं, चाहे वह कितने ही महंगे क्यों न हो।
रोगों के अनुसार दातुन करिए और स्वस्थ रहिए
शरीर का प्रमुख अंग मुंह को माना जाता है, क्योंकि इसी के माध्यम स शरीर को आहार पहुंचाया जाता है।…
शरीर का प्रमुख अंग मुंह को माना जाता है, क्योंकि इसी के माध्यम स शरीर को आहार पहुंचाया जाता है। मुंह के अन्दर निवास करने वाले दांत खाये जाने वाले पदार्थों को पीसने का काम करते हैं ताकि मुंह में डाले गये भोज्य पदार्थ आसानी से गले के रास्ते होकर पेट तक पहुंच जायें।
हमारे देश में प्राचीन काल से ही दांतों को साफ करने के लिए अनेक प्रकार के वृक्षों की हटनियों को दातुन के रूप में प्रयोग किया जाता है। दातुन करने के माध्यम से हम उस वृक्ष विशेष के रसों को अपने दांतों, मसूड़ों और जीभ के सम्पर्क में ले जाते हैं। वृक्ष विशेष के रस न सिर्फ हमारे दांतों और मसूड़ों को ही स्वस्थ रखते हैं बल्कि शरीर के अनेक रोग भी शान्त होते हैं। इस प्रकरण में अनेक प्रकार के दातुनों का प्रयोग कर अलग-अलग रोगों को रोकथाम के बारे में बताया जा रहा है।
नीम की दातुन : नीम की छाल में निम्बीन या मार्गोसीन नामक तिक्त रालमय सत्व तथा निम्बोस्टेरोल एवं एक प्रकार के उड़नशील तेल के साथ ही छह प्रतिशत टैनिक पाया जाता है। इसका दातुन सभी दातुनों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इसकी टहनी से प्राप्त रस से मसूड़ंों की सूजन, पायरिया (खून निकलना), दांतों में कीड़ा लगना, पीप आना, दाह (जलन), दांतों का टेढ़ा होना आदि रोगों का नाश होता है।
‘गर्भवती औरत अगर अपने गर्भकाल के समस्त दिनों में नीम की ताजी टहनियों की दातुन सुबह-शाम नियमित रूप से करती है तो उसका गर्भस्थ शिशु सम्पूर्ण निरोग होकर जन्म लेता है तथा उसे किसी भी प्रकार के रोग निरोधी टीकों को लगाने की आवश्यकता ही नहीं होती।
बबूल की दातुन : आयुर्वेद के मतानुसार बबूल कफनाशक, पित्तनाशक, व्रणरोषण, स्तम्भन, संकोचक, रक्तरोधक, कफध्न, गर्भाशयशोथहर, गर्भाशय स्रावहर तथा विषघ्न माना गया है। बबूल के अन्दर एक गोंद होता है। बबूल के अन्दर पाये जाने वाले रस में श्वेतप्रदर, शुक्र रोग, अतिसार, फुफ्फुसत्रण, उराक्षत, प्रवाहिका आदि जटिल रोगों के साथ ही दांतों को असमय ही न गिरने देने का, हिलने न देने का, मसूड़ों से खून न निकलने देने का मुंह के छालों का रोकने का भी गुण होता है। ब्रह्मलीन पं. तृप्तिनारायण झा शास्त्री के अनुसार लगातार बबूल के दातुन को करते रहने से बांझपन एवं गर्भपात होने का डर नहीं रहता।