शनि चंद्रमा का विष योग का प्रभाव।
कुंडली में बनने वाला ये योग जीवनभर अशुभ फल प्रदान करता है.
इस योग के बारे में कहा जाता है कि जब कुंडली में ये योग मौजूद हो तो ऐसा व्यक्ति यदि पालतु श्वान को भी यदि रोटी खिलाए तो भी उसे एक न एक दिन काट ही लेता है
. इस योग का सबसे अशुभ फल यही है कि ऐसा व्यक्ति मित्र, सगे संबंधियों से ठगा जाता है.
इनसे धोखा पाता है. विष योग में व्यक्ति अपने सभी कामों को बहुत ही गंभीरता से करता है. जिस कारण उसे सफलता भी मिलती है.
होने पर आप शिव रात्रि पर कुछ उपाय कर सकते हैं। अपनी कुंडली के अनुसार हर भाव में अलग अलग प्रभाव पड़ता है।
जैसे मैं पहले भी बता चुकी हूं जन्मकुंडली हमारे शरीर के अंगों से संबंधित है अंग पर शुभ प्रभाव मानना चाहिए
भाव और भावेश निर्मल होने से उसके क्रूर ग्रहों की स्थिति या उस पर क्रूर ग्रहों की दृष्टि होने से शरीर का संबंधित भाग रोग ग्रस्त होता है हर घर का अलग-अलग प्रभाव पड़ता है। और उसी के अनुसार आपके लिए उपाय भी बताए जाएंगे।
चंद्र और शनि किसी भी भाव में इकट्ठा बैठे हो तो विष योग बनता है।
गोचर में जब शनि चंद्र के ऊपर से या जब चंद्र शनि के ऊपर से निकलता है तब विष योग बनता है। जब भी चंद्रमा गोचर में शनि अथवा राहु की राशि में आता है विष योग बनता है।
शनि की चंद्र पर दृष्टि से भी विष योग बनता है।
चन्द्र और शनि विपरीत स्थिति में हों और दोनों अपने-अपने स्थान से एक दूसरे को देख रहे हों तो तब भी विष योग बनता है।
शनि की दशा और चंद्र का प्रत्यंतर हो अथवा चंद्र की दशा हो एवं शनि का प्रत्यंतर हो तो भी विष योग बनता है।
तब नहीं बनता है विष योग :
यदि कुंडली में शनि कमजोर है और चंद्र बलवान है तो विष योग का असर कम होता है।
युति में डिग्री देखी जाती है। यदि वह डिग्री या अंश अनुसार एक दूसरे से 12 अंश दूर है तो यह योग नहीं बनेगा।
लग्न की कुंडली में ये योग किस भाव में बन रहा है यह भी देखा जाता है।
जैसे मेष लग्न की कुंडली में युति हो तो ये योग असर दिखाएगा।
क्योंकि शनि मेष राशि में नीच का होता है, लेकिन यही युति यदि दसवें भाव में हो तो इसका असरदार नहीं होगा, क्योंकि शनि अपनी ही राशि में होगा और चन्द्र अपने चतुर्थ भाव को देख रहा होगा।
चाहे कोई भी लग्न हो यदि 6, 8 या 12वें भाव में ये योग बन रहा है तो लागू होता है।
शनि-चंद्र युति का असर :
.इससे जातक के मन में हमेशा असंतोष, दुख, विषाद, निराशा और जिंदगी में कुछ कमी रहने की टसक बनी रही है। कभी कभी आत्महत्या करने जैसे विचार भी आते हैं। मतलब हर समय मन मस्तिष्क में नकारात्मक सोच बनी रहती है।
यह युति जिस भी भाव में होती है यह उस भाव के फल को खराब करती है। जैसे यदि यह युति पंचम भाव में है तो व्यक्ति जीवन में कभी स्थायित्व नहीं पाता है।
भटकता ही रहता है। यदि सप्तम भाव में चन्द्र व शनि की युति है तो जातक का जीवनसाथी प्रतिष्ठित परिवार से तो होता है, लेकिन दाम्पत्य जीवन की कोई गारंटी नहीं।
हां यदि चंद्र शनि के साथ मंगल भी हो तो दाम्पत्य जीवन में परेशानियां आती हैं
शनि-चन्द्र की युति वाला जातक कभी भी अपने अनुसार काम नहीं कर पाता है उसे हमेशा दूसरो का ही सहारा लेना पडता है। ऐसे जातक के स्वभाव में अस्थिरता होती है। छोटी-छोटी असफलताएं भी उसे निराश कर देती हैं।
इस युति के चलते व्यक्ति में वैराग्य भाव का जन्म भी होता है।
कुंडली में शनि सातवें घर में होने से देता है वैराग्य अगर शनि की राशि मकर और कुंभ भी हो तो ऐसा जातक गृहस्थ जीवन होकर भी एक साधु वाला जीवन जीना पसंद करता है
एक वैराग्य का भाव जातक के अंदर आना शुरू हो जाता है शनि के ऊपर मेरा यह विशेष पोस्ट जरूर अपनी कुंडली पर ध्यान दें।
आपके पास बहुत पैसा है अपना बहुत अच्छा व्यापार है बहुत अच्छा मान सम्मान है बहुत अच्छे जिंदगी है लेकिन पति पत्नी के बीच में हरदम क्लेश हो तो पूरा जीवन बर्बाद हो जाता है।
आज हम बात करते हैं कुंडली के सप्तम भाव की जो कि हर जातक के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है स्त्री हो या पुरुष सप्तम भाव हमारा जीवन में पति-पत्नी का घर होता है। अगर सातवां घर शुभ है या शुभ ग्रह बैठा है तो जीवन बहुत सुख से बीतता है।
सप्तम भाव लग्न कुडंली में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है, लग्न से सातवाँ भाव ही दाम्पत्य व विवाह के लिए कारक माना है। इस भाव एवं इस भाव के स्वामी के साथ ग्रहों की स्थिति व दृष्टि संबंध के अनुसार उस जातक पर शुभ-अशुभ प्रभाव पड़ता है।
सप्तम भाव विवाह एवं जीवनसाथी का घर माना जाता है। इस भाव में शनि का होना विवाह और वैवाहिक जीवन के लिए शुभ संकेत नहीं माना जाता है।
इस भाव में शनि की स्थिति होने पर व्यक्ति की शादी सामान्य आयु से देरी से होती है।
सप्तम भाव में शनि अगर नीच राशि में हो तो तब यह संभावना रहती है कि व्यक्ति काम पीड़ित होकर किसी ऐसे व्यक्ति से विवाह करता है जो उम्र में उससे अधिक बड़ा हो।
शनि सप्तम भाव में हो तो विवाह देर से होता है अगर जल्दी से हो गया तो कलह से घर अशांत रहता है।
चन्द्रमा के साथ शनि की युति होने पर व्यक्ति अपने जीवनसाथी के प्रति प्रेम नहीं रखता एवं किसी अन्य के प्रेम में गृह कलह को जन्म देता है।
सप्तम शनि एवं उससे युति बनाने वाले ग्रह विवाह एवं गृहस्थी के लिए सुखकारक नहीं होते हैं।
नवमांश कुडंली या जन्म कुडंली में जब शनि हो तो शादी 30 वर्ष की आयु के बाद ही करनी चाहिए क्योकि इससे पहले शादी की संभावना नहीं बनती है।
जिनकी कुडंली शनि लग्न में उनके साथ भी यही स्थिति होती है एवं इनकी शादी असफल होने की भी संभावना प्रबल रहती है।
कुडंली में लग्न स्थान से शनि द्वादश होता है और सूर्य द्वितीयेश होता है एवं लग्न कमजोर हो तो उनकी शादी बहुत विलंब से होती है अथवा ऐसी स्थिति बनती है कि ऐसे व्यक्ति शादी नहीं करते।
शनि जिस वधु की कुडंली में सूर्य या चन्द्रमा से युत या दृष्ठ होकर लग्न या सप्तम में होते हैं उनकी शादी में भी बाधा रहती है।
जिन जातकों की लग्न कुंडली में शनि सातवें घर में हो या नवमांश कुंडली में भी सातवें भाव में हो तो ऐसे जातक को शनि के उपाय जरूर करें
सातवें घर का शनी जातक को वैराग्य दे देता है गृहस्थी जीवन से मन उठने लग जाता है ।
शादी तो हो जाती है लेकिन पति पत्नी के रिश्ते से मन दूर होने लगता है।
अगर किसी भी स्त्री पुरुष को इस तरह की बाधाये जीवन में आ रही हैं तो आप शनि के उपचार करें और एक अच्छा जीवन आप शुरू कर सकते हैं।
कुंडली मे नौकरी योग होते हुए भी अगर गलत दिशा वाली नौकरी की तरफ बढ़ा जाता है जो कि है नही तब नौकरी मिल नही पाती लेकिन जिज़ क्षेत्र में नौकरी लिखी है मिलना उस क्षेत्र में आगे बढ़ा जाए तब समय रहते नौकरी मिलना तय है आज इसी विषय पर बात करते है नौकरी मिलने की अच्छी स्थिति तो है लेकिन किस क्षेत्र में कैसे पद पर।।
कुंडली का 10वा भाव और इस भाव का स्वामी कार्यक्षेत्र से सम्बंधित है अब 10वा भाव स्वामी बलवान होकर बलवान सूर्य या मंगल गुरु के साथ है तब सरकारी नौकरी मिल जाएगी जबकि इन ग्रहो के साथ सम्बन्ध में नही है तब प्राइवेट जॉब में सफलता मिलेगी जैसे 10वे भाव और 10वे भाव स्वामी बलवान होकर कुंडली के 12भावों में से जिस भी भाव या जिन भी भावो के स्वामियों के साथ सम्बन्ध में है उस ही क्षेत्र में नौकरी मिलेगी अन्य क्षेत्रों में नही और उस क्षेत्र में नौकरी मिलकर अच्छी सफलता मिल जाएगी कैसे अब किस क्षेत्र में नौकरी है और सरकारी या प्राइवेट और किस तरह की अब कुछ उदाहरणों से समझते है।।
उदाहरण_अनुसार_सिंह_लग्न1:-
सिंह लग्न में 10वे भाव स्वामी शुक्र बलवान होकर तीसरे भाव से सबन्ध बनाकर बैठा है सूर्य या मंगल सहित तब पुलिस, मिलिट्री क्षेत्रों में ही सरकारी नौकरी के लिए आगे बढ़ने पर मिल पाएगी जबकि शुक्र यहाँ सूर्य मंगल सरकारी ग्रहो के साथ नही है तब मीडिया पत्रकारिता, कंप्यूटर इंजीनियरिंग या अन्य जिन ग्रहो के साथ शुक्र यहाँ सम्बन्ध में होगा उस क्षेत्र में ही जॉब मिलकर सफलता मिलेगी।
उदाहरण_अनुसार_वृश्चिक_लग्न2:-
वृश्चिक लग्न में दशमेश सूर्य बलवान होकर दूसरे या पाचवे भाव स्वामी गुरु के साथ है या इन भावों में सूर्य बलि होकर बैठा है तब टीचिंग या बैंक/फाइनेंस में ही नौकरी सफलता के रास्ते बनेगे यहाँ दशमेश सूर्य गुरु या मंगल के साथ है तब सरकारी जॉब वरना प्राइवेट क्षेत्र जॉब में सफलता मिलेगी।
उदाहरण_अनुसार_कुम्भ_लग्न3:-
कुम्भ लग्न में दसवे भाव स्वामी मंगल बलि होकर सूर्य सहित माना 11वे भाव मे हो तब सरकारी जॉब टेक्स्ट डिपार्टमेंट या टीचिंग में मिल पाएगी क्योंकि 11वा भाव टेक्स्ट से सम्बंधित है तो 11वे भाव मे बैठकर यह ग्रह 5वे भाव को देखेंगे जो कि टीचिंग से सम्बंधित है।
यदि दशमेश बलवान होकर बलवान शनि के साथ है तब इंजीनियरिंग क्षेत्र में जॉब अच्छी सफलता देगी।
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